झूठ के पल्लू़ पकड़ना छोड़ दे
झूठ के पल्लू़ पकड़ना छोड़ दे
साँस तू अब संभलना छोड़ दे
दिल मिरा तू भी धड़कना छोड़ दे।
बाग़ में अब फूल खिलते ही नहीं
तितली फिर अब मचलना छोड़ दे।
रोशनी दिखती नहीं अब चार सू
घर से अब बाहर निकलना छोड़ दे।
क्या पता वो सच ही बोले अब यहाँ
झूठ के पल्लू़ पकड़ना छोड़ दे।
दिन ढले सूरज कहीं गुम जायगा
घूप मुट्ठी में ज़कड़ना छोड़ दे।
किस घड़ी उसका बुलावा आ चले
फिर अभी से तो अकड़ना छोड़ दे।।
