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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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वक्त और खामोशी

वक्त और खामोशी

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वक़्त की खामोशियों की

पहचान बनती जा रही

जिंदगी की डोर प्यारी

यूं ही कटती जा रही

रोज धीरे धीरे ही सही

पहचान मिटती जा रही

खुशियों की अंतिम वेला

रोज खिलती जा रही

सुख दुख की बात कहे

या जिंदगी की सच्चाई

वक़्त बीता जा रहा दुनिया में

जिंदगी लेती अंगड़ाई

फिक्र जब खत्म हो जाती

अपने ही लोगों की

तब लोगों को याद आती

अपनी जीवन प्यारी

पुण्य किया कितना हमने

या बने पाप के भागीदारी

सब कुछ याद आती अंतिम वेला में

अपने जीवन की बात पुरानी

जिंदगी की छोर अंतिम

है समझ ले तू इंसान

मौत आती है समय पे

रोक नहीं सकते भगवान

कुछ नही साथ लेकर आए

फिर चिंता किस बात की

पाया तुमने अपनी मेहनत से

साथ नही कुछ मेरे दुख इस बात की

ये तो अंतिम वेला है

तुम्हारे पुण्य और पाप की

जप ले जितना हो सके राम का नाम

अब दुख किस बात की।


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