* विशुद्ध प्रेम था *
* विशुद्ध प्रेम था *
राम कृष्ण की भूमि
पर है अब सन्नाटा
गोपियां करती विरह
कहाँ है मुरली वाला।
प्रेम था फूल और भँवरे की तरह
कलियों में कांटे की तरह
जल मै मछली की तरह
जीवन था एक संताप ।
विशुद्ध प्रेम था ऐसा
संसार में अपनी महक छोड़ता
निस्वार्थ भाव से भरा हुआ
पावन है जल की तरह ।
राधे श्याम की जोड़ी
मनमोहक रूप देख
मन के दर्पण में
महक उठा मेरा जीवन।