विरह
विरह
मधुर सावन, कहाँ खोया
पिया कोमल,हिया रोया
बताओ मैं किधर जाऊँ
कहीं घुट-घुट न मर जाऊँ
बिरह बेदन,लगी काया
बढ़ी पीड़ा,विरह छाया
घटा मन मीत, घिर आई
सजल नम आँख भर आई
लगें ठहरे, नयन गहरे
ज्यूँ सागर में, बहें लहरें
उदासी दे गयी बदली
कहे मुझको सभी पगली
बुलाती हर समय हिचकी
रुलाती कंठ भर सिसकी
सजल नीलम हुए नैना
कहो किससे कहूँ बैना ?