विराट सागर
विराट सागर
विशाल विराट अद्भुत सागर ,
कभी अंबर को चूमता,
कभी थल को छूता हुआ,
श्वेत ,ध्वल चांदनी सी लहरें ,
अठखेलियां करती उसकी गोद में,
जन्मी कुछ हवाओं से,
कुछ चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण से,
कुछ भूकंप भूस्खलन से।
आतुर रहती छूने को तट,
उन्माद, उमंग से भरपूर ,
कभी शांत, कभी विचलित ,
कभी प्रचंड ,कभी विनाशकारी" सुनामी"
उठती तो कहलाती "ज्वार ",
गिरती तो बनती "भाटा"
सागर जैसे पिता है इनका,
करने देता उनको मन की सारी इच्छाएं पूरी।
मन ही मन हर्षाता गर्वीला समुंदर,
जब किलकारी मारती उसकी लहरें।
सभी को सम्मिलित करता खुद में,
चाहे ताल, पोखर ,चाहे सरिता,
कोई भेदभाव नहीं उसके हृदय में।
जलवायु को संयमित करता,
जलधि , रत्नागर , सिंधु नाम से प्रचलित,
अपने भीतर अनगिनत रहस्यों को समेटे हुए,
उसकी गहराई में छिपे असंख्य जीव -जंतु ,
वनस्पति ,रत्न, शंख और खनिज।
व्यापार और यात्रा को सुलभ करता,
बिजली उत्पादन को अग्रसर।
कितने मछुआरों की जीविका का एकमात्र साधन,
मनोरंजक तैराकी और नौकायन।
कितना महत्वपूर्ण है सागर मानव संस्कृति के लिए,
फिर भी मानव तेरी महत्वता को जानकर भी,
प्रदूषित करता तुझको है।
अभी भी समय है अगर जुट जाएं हम,
वरना विनाश निश्चित है।
सागर संरक्षण के लिए कटिबद्ध हों,
सागर , सागर नहीं है , जीवन है।
