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अच्युतं केशवं

Fantasy

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अच्युतं केशवं

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विलय की सुनिश्चितता

विलय की सुनिश्चितता

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जब

नदी पहुँचती है

जब समुद्र के तट पर

विलीन होने के लिए अपने भवितव्य में

जानती है

विलय की सुनिश्चितता

ज्ञान भी होता है

और

अनुभव भी

समुद्र से वाष्प

वाष्प से बादल

बादल से हिम/जल

हिम/जल से

नद

और नद से पुनः समुद्र होने की निरन्तरता का

किन्तु

मोह भी होता है

तटों से,लहर से

लहरों में विचरते जल जीवों से

मन में स्मृतियों की

उथल-पुथल

कभी-कभी

विस्तारित करती है

जीवन की अतृप्त कामनाओं को भी

गति के कम होने

और

शक्ति के हीन होने से

इच्छाएं नहीं मरती

विस्तारित हो जातीं हैं

नये रूप और कलेवर में

यह नया रूप और कलेवर

भौतिक से अधिक

होता है मानसिक आत्मिक

इसलिए

नदी की जरूरत शारीरिक से अधिक मानसिक है

उसे आपके संसाधन नहीं

साथ चाहिए

एश्वर्य और भोग नहीं

प्रेम और संवेदना चाहिए

जिससे

हो सके उसका विलय

उसका विसर्जन

उसके लिए सहज और सरल

कि जैसे

टूट जाता है पका हुआ

फल अपनी डाल से

ऊष्मा पाकर घुल जाती है बर्फ

अपने ही जल में

बिखर जाता है

आकाश में एक बुझा हुआ तारा.

नदी को मिलने दो समुद्र में

उसके पूरे गरिमामय जीवन के गौरव के साथ

धन्यवादित,आभारी,प्रेमिल स्वर में ही

नदी को विदा दो

और याद रखो कि

तुम भी तो नदी हो

और तुम्हें भी पहुँचना ही है

एक दिन सागर के तटद्वार .


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