विकास या विनाश
विकास या विनाश
काश कि हम सब अनपढ़ होते।
किसी पुराने युग में होते।
काश कि सब घर इकट्ठे होते
गांव में सांझा चूल्हे होते।
किसने कहा था विकास करने को
किसने कहा था इतना पढ़ने को
पढ़ाई में भौतिक सुखों का सपना दिखाया
सबसे पहले इंसान ने अपना संयुक्त परिवार गंवाया।
शहर भाग गए घर के बच्चे
गांव पूरे सुनसान हो गए।
तरसती रही निगाहें उनके माता-पिता की
उनसे मिले हुए जाने कितने साल हो गए।
समय ने अपना खेल दिखाया
भौतिक सुखों का सपना दिखाकर
बच्चों ने भीअपने बच्चों को विदेशों में पढ़ाया।
समय बीत गया बैठे हैं अब
जब संस्कार के लिए भी कोई बच्चा विदेश से ना आया।
शहर भी तो वीरान हो गए।
हर घर पर गिद्ध सी नजर है संपत्ति के डीलरों की।
गिन रहे हैं दिन वृद्धजन अकेले घर में
बड़े-बड़े घर भी तो अब बेकार हो गए।
बदल रहा है समय और आगे बदलेगा भी।
विदेश जाने वाले बच्चे क्या सुख से जी पाएंगे।
बिक रही है चांद पर भी जमीन।
सोच रहे हैं उनके बच्चे चांद से कब आएंगे ,
कहीं ऐसा ना हो इंतजार करते करते चांद को देखते हुए ही वे भी मर जाएंगे।
कहते हैं लोग विकास हो रहा
तो भला विनाश कैसा होता होगा?
जीवन खत्म होने के रास्ते तो प्रकृति ने और भी बना लिए
मर जाते तुम भी ऐसे ही किसी कारण से
क्यों कर मरे तुम डिप्रेशन और अकेलेपन से।
विकास हो रहा बहुत ही ज्यादा
बेटे ने मोबाइल गेम के चक्कर में मां को ही मारा।
अरे मूर्खों अनपढ़ ही रहते
तुमने तो विनाश को ही विकास कहकर पुकारा।
