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Neeraj Samastipuri

Abstract

5.0  

Neeraj Samastipuri

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विद्रोह

विद्रोह

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हम विद्रोह के बहुत क़रीब है ग़ौर से ज़रा तुम देखो तो

अंत के चौखट पहुच रहे सब ग़ौर से जरा तुम देखो तो


ये विद्रोह का शंखनाद ही है, जो धर्म के नाम पे सुनाई पड़ता है

ये तबाही का शंखनाद अब हो चुका है ग़ौर से जरा तुम देखो तो


ये हिन्दू मुस्लिम का खेल तेरा, महंगा पड़ेगा सबको यहाँ

ऐ राजनितिज्ञों, कर चुके हो बड़ी भूल यहाँ, ग़ौर से जरा तुम देखो तो


अखंड भारत के खंड खंड होने के द्वार पर ला खड़ा किया है देश को

इसके भी तुम्हीं जिम्मेवार हो ऐ राजनितिज्ञों, ग़ौर से जरा तुम देखो तो


जल रहा है ये प्यारा देश अब तो हिन्दू मुस्लिम मंदिर मस्ज़िद के आगे में

धीरे धीरे सुलग रही है चिंगारी भी अब, ग़ौर से ज़रा तुम देखो तो


देख के घबरा जाता हूँ, आज़ाद भगत सुभाष के सपनो के देश को

तुम भी एक बार घबरा जाओगे ग़ौर से ज़रा तुम देखो तो।


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