Aurat ki bari (औरत की बारी)
Aurat ki bari (औरत की बारी)
उठ चल कि तुझमे ये जाँ अभी बाक़ी है
तू औरत है यही तेरे निशां अभी बाक़ी हैं।
तू मर्द की जागीर है! ऐसा किसने कहा?
दे दे ज़बाब कि तुझमे जुबां अभी बाक़ी है।
मौन रहना, अच्छा नही, कि लब है तेरे, तू बोल
मर्दों से पूछना तुम्हें, कई सवाल अभी बाक़ी हैं।
औरत है तू, तो दुर्गा, काली, लक्ष्मी का रूप दिखा
निकल मर्दों की पहलू से कि सांसे अभी बाक़ी हैं।
मांग रहा है ये ज़माना तुमसे हिसाब सदियों का
तोड़ दे बेरियाँ कि तेरे आज़ाद हाथ अभी बाक़ी हैं।
दयावान है तू, मग़र लोग कमज़ोर समझ रहे हैं
उठ चल शहर की ओर कि बियाबां अभी बाक़ी है।
