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तुमसे प्यार हो गया (भाग-२)

तुमसे प्यार हो गया (भाग-२)

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बनो सफर, हमारे सफर की,

अब ऐ हमसफ़र,

तन्हा तेरे बिना मैं

'उखड़' सा जाता हूँ ।

बात मानो मेरी

ऐ "इश्क़ कि चाँद", देख कर

जिंदगी कि लंबी सफर को मैं

'सिहर' सा जाता हूँ।।


जब देखता हूँ

तेरे बिना जिंदगी को,

तो खुद कि ही आँखों से मैं

'उतर' सा जाता हूँ।

तुम्हें लगता है ना

कि आसान है जिंदगी को अकेले जीना ,

यही पहलु पर सोचकर

मैं 'ठहर' सा जाता हूँ।।


तेरा साथ छूटने से,

खुद कि परवाह कहाँ रहता है,

तुम्हारे बगैर थोड़ा मैं

'बिगड़' सा जाता हूँ।

तुम रहोगे मेरे साथ,

रख के मेरे हाथ में अपनी हाथ,

यही ख़्वाब देख कर मैं

'सुधर' सा जाता हूँ।।


तेरे प्यार के

आंगन में ख्वाबों को

सजाते-सजाते, थोड़ा मैं

'बहक' सा जाता हूँ।

अनजाने में छु कर

तेरी रूह की खुशबू को,

इक अजब तरीका से मैं

'महक' सा जाता हूँ।।


चल कर देख लो कुछ कदम

इस 'बिहारी' के साथ, तेरे साथ

कदम मिलाकर चलने के लिए मैं

'तरस' सा जाता हूँ।

प्यार हो गया है तुमसे

इस समस्तीपुरी को, यही

इजहार-ए-इश्क़ तुम संग करने को मैं

'झिझक' सा जाता हूँ।।


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