अब आहिस्ता-आहिस्ता संभलने लगा
अब आहिस्ता-आहिस्ता संभलने लगा


ठोकर-ए-मुहब्बत खाने के बाद
जाम-ए-प्याले छलकाने के बाद
जिंदगी में ठहरने के बाद
दर्द से उबरने के बाद
अब आहिस्ता-आहिस्ता चलने लगा हूँ।
तुम जैसे, मुझे समझने वाले
निःस्वार्थ और समझदार
यार की यारी पा के
मैं इस वीरान, बेजान दुनिया में
अब धीरे-धीरे संभलने लगा हूँ।
दोस्ती तूने भी गजब की निभाई
मज़ा आ गया जिंदगी जीने में
मैं ना ना करता रहा,
तू भी ज़िद पे अड़ी रही
और बदल के मेरे दिल के मौसम को
एक नई उम्मीद जगा के गयी।
कि तेरे इशारों के सहारों पे
बेहिचक क़दम को
रख कर ऐ मितवा
ग़म सारे भुला कर
अब आहिस्ता-आहिस्ता मुस्कुराने लगा हूँ।
हाँ, अब आहिस्ता-आहिस्ता चलने लगा हूँ,
हाँ, अब धीरे-धीरे संभलने लगा हूँ।।