गिरती सोच
गिरती सोच
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आज कल लोग बहुत, गिराने में लगे हैं
जिंदा को गिरा, मुर्दा को उठाने में लगे है
मंज़िल किधर है और जा किधर रहे हैं
बेमतलब के लोग यूँ ही आने जाने में लगे हैं
कहते हैं इधर उठा है 'धुआँ' उठा है उधर
नज़रें उठा कर देखा तो आग ज़माने में लगे है
जिंदगी की इम्तिहान देते देते थक गया वो फ़क़ीर
और लोग मुर्दा समझकर उसको जलाने में लगे हैं
कितने पत्थर दिल हैं ज़माने के लोगों में
बेसहारा, बेघर फ़क़ीर को, रुलाने में लगे हैं।
