विकास का शोर
विकास का शोर
मेरे मन मे न जाने कितनी सारी बातें आती जाती रहती है....
वे कितनी सारी बातें है जिन्हें कहना तो क्या सोचना भी मना है...
कभी कभी मुझे लगता है उन सारी बातों को मैं लफ़्ज़ों में बयाँ कर दूँ....
मेरा कवी मन दोलायमान हो जाता है....वह मुझसे सवाल करता है....
मैं अक्सर उन सारे सवालों से नज़रें चुराता हूँ....
जब कोई पूछता है की तुम्हे वे बच्चें नज़र क्यों नही आते जिन्हे दो वक़्त की रोटी भी मयस्सर नहीं होती है?
वही बच्चें जो पढ़ने के लिए कम और मिड डे मील के लिए ज्यादा स्कूल में जाते है....
जो टीवी में दिखायी जानेवाले पिज़्ज़ा को ललचायी नज़रों से देखते है....
स्कूल यूनिफार्म ,कॉपी,किताबें जिनके लिए किसी स्वप्न से कम नहीं है....
कुछ लोग मुझसे और भी सवाल करते है....
कैसे तुम इस हक़ीक़ी दुनिया से मुहँ चुरा लेते हो?
दुनिया के मुद्दों को छोड़कर फ़क़त चाँद तारों की बातें लिखते रहते हो?
भूख से बिलबिलाते लोगों से भरी यह दुनिया तुम्हे कैसे रंगीन नज़र आती है?
और भी न जाने क्या क्या...
आजकल टीवी और अख़बारों के पत्रकार के अलावा कवी भी सरकार के साथ दिखाई देते है....
कवी महोदय यह सिस्टम के साथ क्या चाटुकारिता नहीं है?
कभी कवी हुआ करते थे जो अपनी कविताओं से सरकारों को ललकारा करते थे....
लेकिन आजकल क्या कवी और क्या पत्रकार सब सिस्टम के साथ हो चले है.....
कभी मीडिया भी लोकतंत्र का चौथा खम्बा हुआ करता था....
आज मीडिया खुद लड़खड़ा रहा है फिर लोकतंत्र का क्या?
मेरे जैसा फालतू कवी अपने मे ही मगन रहता है.....
उसको लिए काहे का लोकतंत्र?
काहे का चौथा खम्बा?
काहे के प्रिंसिपल्स?
मेरे लिए ये सब फालतू बातें है...
ना मुझे इनसे कोई लगाव है और ना ही इनकी ज़रूरत भी है....
आजकल मेरे लिए बस यही काफी है कि सिस्टम का साथ दो....
बदले में यह सिस्टम अवसर आने पर लेनदेन भी करता है....
हाँ, किसी महामण्डल में अध्यक्ष या फिर ऐसा ही कुछ और....
फिर क्या...
हर तरफ़ सबका साथ और सबका विकास का शोर होने लगता है....
हर कोई देश के विकास में लग जाते है....