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shraddha shrivastava

Abstract

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shraddha shrivastava

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वर्किंग वुमन-

वर्किंग वुमन-

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मेरी रचना में आज का विषय है वर्किंग वुमन-

वर्किंग वुमन हूँ तो क्या हुआ मैं भी छौक लगाती हूं सुबह सबसे पहले घर में उठकर किचन से बखूबी दोस्ती निभाती हूं,सब सोते है देर तक

मैं घर और बाहर दोनो को संभालने के हिसाब से समय पे उठ जाती हूँ!!

वर्किंग वुमन हूँ तो क्या हुआ मैं भी छौक लगाती हूं

कुछ लोग सोचते है की ये बाहर कमाने जाती तो ये क्या घर के काम करती होगी,लेकिन उन्हें कहाँ पता कि ये बाहर के साथ-साथ घर की भी ज़िम्मेदारी बखूबी निभती है,इतनी ज़िम्मेदारियों के बीच अगर ये अपनी पहचान बनाती है तो क्या गलत करती है,

उसके नाम से लोग उसे जाने ऐसा सपना अपने अन्दर अगर रखती तो क्या गलत करती है!!

वर्किंग वुमन हूँ तो क्या हुआ मैं भी छौक लगाती हूं

जल्दी में खाना भले बन

ती हूँ मगर प्यार उसमे बखूबी मिलती हूँ,बाहर से आकर मैं घर मे कहाँ सुस्ता पाती हूँ,उम्मीद जरूर लगाती हूँ कि कोई हाथ बटा दे,लेकिन सच जानती हूँ इसलिए अकेले खुद ही लग जाती हूँ,घर के बाकी लोग दिनभर काम कर के थक गए होंगे मग़र में थकी भी हूँ,

तू भी मैं सब की फरमाइश पूरी करती जाती हूं!!

वर्किंग वुमन हूँ तो क्या हुआ मैं भी छौक लगाती हूं

लोग भले ही ना करे मेरा सम्मान,मग़र में आईने के सामने जाके खुद से बखूबी आँख मिलती हूँ,

चाहे कैसी भी परिस्थिति हो में अपना अस्तित्व जरूर बनती हूँ,कुछ कर गुजरने की जिद्द है में उस ज़िद्द से बखूबी हाथ मिलती हूँ, मैं ना होता तो तुम्हारा क्या होता इन तानों से दूर रह सको इसलिए अपना अस्तित्व में बनाती हूँ !

वर्किंग वुमन हूँ तो क्या हुआ….........


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