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shraddha shrivastava

Others

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shraddha shrivastava

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सभी पुरुषो को समर्पित

सभी पुरुषो को समर्पित

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किरदार लेकर घूमता हूं अखबार लेकर घूमता हूं

नया-नया हूं इस किरदार में परेशान हूं

फिर भी मुस्कान लेकर घूमता हूं!!

शौक चढ़ा है नया नया कुछ कर गुजरने का

ज़िम्मेदारी है सर पर मानता हूं,

पुरुष हूं मैं जानता हूं,मग़र इस पुरुष मैं भी,

कभी-कभी खुद को मैं ढूढता हूं!!

किरदार लेकर घूमता हूं अखबार लेकर घूमता हूं

ये सच है कि मैं भाग नहीं सकता,

और नकाबे ओढ़कर जाग नहीं सकता,

इसी रूप मैं खुद को रखना है और घर वालो को भी मिलना है,

मैं चाहता बहुत कुछ हूं,मग़र दो रूप मैं खुद को नहीं रख सकता!!

किरदार लेकर घूमता हूं अखबार लेकर घूमता हूं

मैं पुरुष हूं तो उम्मीद भी कुछ ज्यादा है

कितने हिस्सो मैं बाँट जाऊँगा,मेरे हिस्सेदार भी कुछ ज्यादा है,

खामोशी ओढ़ रखी है मैंने इसका मतलब ये नहीं

कि मेरे स्वर मैं आवाज़ नहीं कुछ ज्यादा है

मैं बोलता हूं कई बार भीतर ही भीतर मेरे शब्दों ने

एक अलग सा चादर कही ओढ़ रखा है!!

किरदार लेकर घूमता हूं अखबार लेकर…......



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