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shraddha shrivastava

Others

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shraddha shrivastava

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एक खिड़की तो तुम

एक खिड़की तो तुम

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एक खिड़की तो तुम खुली छोड़ आये हो

तुम सब कहाँ बन्द कर के आये हो

एक आखिरी उम्मीद वही से तो आ रही है

तुम जिसे नजरंदाज कर के जा रहे हो!!

क्रोधित हो तुम इसलिए कुछ नहीं देख पा रहे हो

नाराज़ हो कभी खुद से तो कभी खुदा से,

इसलिए बस बेतुके सवाल किये जा रहे हो

जवाब होता है आसपास ही मगर तुम सुनते कहाँ हो

दो पल ठहर के ज़िन्दगी को तुम देखते कहाँ हो!!

एक खिड़की तो तुम खुली छोड़ आये हो

तुम सब कहाँ बन्द कर के आये हो

बेचैन हो तुम हद से ज्यादा इसलिए तसल्ली भी नहीं देख पा रहे हो,

खुद ही से सवाल करते जा रहे हो,

और जवाब के इंतजार मैं खुदा की और देखे जा रहे हो,

ये नाइंसाफी तो तुम अपने साथ ही तो करते जा रहे हो,

क्या मिलेगा ये सब कर के तुम वापस

पछता के आखिर मैं घर की और ही तो आ रहे हो!!

एक खिड़की तो तुम खुली छोड़ आये…........


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