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shraddha shrivastava

Tragedy

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shraddha shrivastava

Tragedy

गृहणी की ज़िन्दगी की दास्तान-

गृहणी की ज़िन्दगी की दास्तान-

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मैं आगे निकल गई मेरा किरदार पीछे रह गया

बुने थे कई सपने उन सपनों का सार पीछे रह गया!!

आवाज़ लगाई गई मुझे कई तरह के नामो से

उन नामो को सुनकर लगा कि जैसे मेरा

खुद का नाम कही पीछे रह गया,मैं बहुत सारे रिश्तों में

खुशी-खुशी बधी, मग़र मेरा खुद से बंधन कही न कही कमजोर रह गया!!

मैं आगे निकल गई मेरा किरदार पीछे रह गया

बुने थे कई सपने उन सपनों का सार पीछे रह गया!!

कोई पूछे मुझसे पहचान मेरी तो मैं कहती हूं कि मैं गृहणी हूं,कम नहीं है वैसे तो मेरा भी ओहदा,

मगर डरती हूं फिर भी अगर छोड़ दिया इन रिश्तों ने तो क्या होगी पहचान मेरी,

मैं खुश नहीं हूं ऐसा नहीं है, मगर मैं खुल के जी रही हूं ऐसा भी नहीं है!!

मैं आगे निकल गई मेरा किरदार पीछे रह गया

बुने थे कई सपने उन सपनों का सार पीछे रह गया!!

अभी भी सोचती हूँ उन सपनों को पूरा करने के बारे में तो पैर कांपते है,

कहने जाती हूँ मै जब परिवार वालो से तब होंठ कांपते है,

मग़र परिवार के एक भी सदस्य ने जब आवाज़ लगाई,

तो साड़ी का पल्लू कमर में बांधकर फिर बस मैंने दौड़ लगाई!!

मैं आगे निकल गई मेरा किरदार….....…..



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