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shraddha shrivastava

Tragedy

4  

shraddha shrivastava

Tragedy

एक पुरूष के अधूरे प्रेम की

एक पुरूष के अधूरे प्रेम की

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वो टूट चुका था बस लोगो को लगता था वो जुड़ा हुआ है,

वो पहला प्यार था उसका वो पहला यार था उसका!!

वो बालों की एक लट थी जिसपे दिल हारा था

मैं हार चुका था सब कुछ अपना वही पे उस जगह पे वार चुका था,

वो कागज का एक टूकड़ा अब तक मेरे पास है जिसपे लिखकर उसने अपने प्रेम की स्वीकृति दी थी!!

वो टूट चुका था बस लोगो को लगता था वो जुड़ा हुआ है,

वो सच्चे प्रेम को बखूबी समझता था,वो प्रेम की पथरीली राहों मैं भी हाथ थाम कर चलता था

वो छोड़ता नहीं बीच सफर मैं उसको लेकिन कही कुछ छूट रहा था,उस तरफ से डोर कमजोर हो रही थी,प्रेम की परिभाषा ही कुछ और हो रही थी!!

वो टूट चुका था बस लोगो को लगता था वो जुड़ा हुआ है,

झांक कर देखना तुम कुछ पुरुष की आँखे मैं एक दम खाली है, भरी थी वो कभी प्रेम मैं,मग़र आज खोज रही है खुद को,

वो देखना चाहती है खुद को,मग़र मुलाकात हो भी तो कहाँ हो पता तो वही है मग़र इन्सान ही बदल गया,प्रेम की राह मैं अब यू अकेला चलते चलते वो बहुत थक गया!!

वो टूट चुका था बस लोगो को…..........


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