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shraddha shrivastava

Others

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shraddha shrivastava

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एक सच मैं लिखते- लिखते रह गई

एक सच मैं लिखते- लिखते रह गई

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एक सच मैं लिखते- लिखते रह गई

और एक झूठ तुम पढ़ते - पढ़ते रह गये,

इस सच और झूठ के खेल में

रिश्ते कहीं से पके तो कहीं से कच्चे रह गये!!

एक बीज अपनी कहानी नहीं कह पाया और बड़ा हो गया 

पानी खाद सब मिली उसे और वो खड़ा हो गया,

कमी थी तो बस प्रेम की एक प्रेम नहीं मिल पाया था,

जिसकी वजह से वो हरा -भरा होकर भी 

कही-कही से मुरझाया था!!

एक सच मैं लिखते - लिखते रह गई,

और एक झूठ तुम पढ़ते - पढ़ते रह गये,

पल में टूट रहे रिश्ते क्योंकि लोग इसकी जड़ को नहीं समझते,

अभी-अभी तो आया है तुम्हारी ज़िन्दगी में वो एक सुनहरा बीज है,

लोग उसे आते साथ ही पेड़ की तरह क्यो रखते,

कमी रह जाती है क़भी इस तरफ से तो क़भी उस तरफ से!!

एक सच मैं लिखते - लिखते रह गई

 और एक झूठ तुम पढ़ते पढ़ते रह गये,

कितनी कहानियां बाद में फिर जन्म लेती है पछतावे की 

और क्रोध की, कहीं चिंगारी बस निकलती है 

तो कहीं आग बनके ऐसे बरसती है कि फिर सब कुछ राख कर देती है,

कही कुछ टुकड़े बचते है समेटने को,तो कही हर एक याद तक भस्म कर देती है!!

एक सच मैं लिखते- लिखते रह गई…........


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