भाग्य या कर्म।
भाग्य या कर्म।
भाग्य बड़ा या कर्म, यूं ही बहस छिड़ी थी।
मैं तो थी निपट अज्ञानी
सामने बैठे थे बहुत बड़े ज्योतिषाचार्य और ज्ञानी
कहना उनका सत्य होता था।
भाग्य उन्हें विदित होता था।
उनकी बहुत सी बातें सत्य हुई थी
राज्य में उनकी धाक जमी हुई थी
वह सबका भाग्य बांच रहे थे।
बहुत से लोग उनके पास खड़े थे
मुझे दूर खड़े देख वह बोले
क्या तुमको ज्योतिष पर विश्वास नहीं
मैं तुमको भी बतलाऊंगा,
डरने की कोई बात नहीं।
मैंने उनके चरण छुए और उन्हें जवाब दिया
बचपन से आज तक मैंने गीता का ही पाठ किया।
होनी का होना टल नहीं सकता
भाग्य को कोई बदल नहीं सकता।
लेकिन मेरा विश्वास कुछ और है कर्मों पर मेरा पूरा जोर है।
आंधी आने से रुक नहीं सकती तूफान भी तो आएगा।
लेकिन यह तो बताओ गुरु जी क्या इनके कारण बहुत मजबूत घर भी बह जाएंगे?
मुझे आज भी याद है बया और वानर की कहानी।
वानर ने घर नहीं बनाया तो खुद को बारिश में भीगा पाया।
बया ने घोसला बनाया तो आराम से घोसले में ही अपने बच्चों को खाना खिलाया।
लेकिन बया का भी घर तोड़ दिया वानर ने
जब बया ने वानर को कर्मों का का पाठ पढ़ाया।
इसलिए ही तो आज भी भाग्य बांचने वाले ही ज्यादा है।
कर्म करना कठिन है शायद इसलिए ही कर्म करने की प्रेरणा देने को
कहां कहीं कब कोई और फिर कृष्ण हो पाया।
नमस्कार कहकर मैं चल दी।
क्या मैंने की थी कोई गलती
भाग्य पर है मेरा पूर्ण विश्वास
लेकिन कर्मों से ही बुझती प्यास।