मिली साहा

Abstract

4.7  

मिली साहा

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साथ तेरा हो तो....

साथ तेरा हो तो....

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हर चट्टान को तोड़कर, मैं, राह-ए-ज़िन्दगी पर अग्रसर रहूँ

साथ तेरा गर हो तो, झंझावतों के बीच, बाड़ के पार बहूँ।

मुश्किलों के दलदल में धंसकर भी, मुस्कुराकर लौट आऊँ

तू जो साथ, बीच भंवर से, डूबती कश्ती भी निकाल लाऊँ।

रोशन कर दूँ मैं, मेरी उम्मीदों की, बुझती हुई, शमा को भी

तू हौसला बनकर, साथ हो तो, हर ज़ख्म, यहाँ, सह जाऊँ।

गवाह हैं ये फिजाएं, इश्क़ की, लिखेंगी संघर्षों की कहानी

तेरी मेरी राह एक तो, वक्त की गर्द से, मैं मंजिल ढूँढ लाऊँ।

तेरे इश्क़ के नूर से, मिले हिम्मत मुझे, तूफ़ानों से लड़ने की

तू एक बार कहे तो, चट्टानों को काटकर भी राह बना जाऊँ।

सीप से निकाल लाऊँ, मोती, रुख मोड़कर, इन लहरों का

तू साहिल हो मेरा तो, खोकर वजूद भी, वापस लौट आऊँ।

राह-ए-जिंदगी गुज़रे चाहे, किसी भी इम्तिहान की पटरी से

बस तू हाथ थामें रखे तो, हर एक पड़ाव मैं, पार कर जाऊँ।

फलक से गिरे बिजलियाँ, या अँधेरों की हो, कोई साजिश

तेरे इश्क़ की लौ हो तो, बार-बार हारकर भी मैं, जीत जाऊँ।

काँटों भरी राह भी तेरे इश्क से, है फूलों की मखमली सेज

तू जो सफ़र का आग़ाज़ हो तो, मैं, वक्त से भी, लड़ जाऊँ।

क्षण में ही लकीर बदल दूँ, मैं, अपने रूठे हुए, तकदीर की

तू जो हो नसीब मेरा, तो मैं ख़्वाब की ताबीर भी ढूँढ लाऊँ।

लड़खड़ाए कदम फिक्र नहीं, मुश्किलों का अब जिक्र नहीं

पतझड़ में भी लगे, बहार का मौसम, तुझे जो, साथ पाऊँ।


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