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Anita Chandrakar

Abstract

4  

Anita Chandrakar

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माँ

माँ

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315


माँ ममता की मूरत होती, माँ होती भगवान।

माँ का स्थान अद्वितीय, माँ गुणों की खान।

माँ शब्द में संसार बसा है, माँ से बढ़कर कौन।

अद्भुत धैर्य धरा सा उनमें, सहती रहती मौन।


माँ धूप में शीतल छाया, स्नेह भरी पुरवाई माँ।

महकाती घर आँगन, हर रोग की दवाई माँ।

गंगाजल सी पावन माँ, आँचल में ढेरों ख़ुशियाँ।

माँ की गोद सुखद बिछौना, बसी जिसमें दुनिया।


माँ नाम समर्पण का, वात्सल्य की निर्मल धारा।

खुश रहती सबकी खुशी में, होती सुदृढ़ सहारा।

बच्चों के जीवन में, अमृत रस से भर देती आनंद।

पाने माँ की ममता, धरती पर आते हैं परमानन्द।


छलक पड़े आँखो से आँसू, माँ की याद आते ही।

मुँह से निकलता माँ माँ, चोंट जरा सा लगते ही।

शब्द शब्द महक उठते, जब माँ पर कुछ लिखती हूँ।

माँ से बढ़कर कोई नही, अब ये बात मैं समझती हूँ।


मेरे हित उसने त्याग किया, अनगिनत दुखों से गुजरी वो।

सुख के पालने में मुझे झुलाया, धूप में तपती रही वो।

मेरी हर ख़्वाहिश पूरी की, अपने लिए न कुछ सोची माँ।

उसका स्पर्श जादू भरा, बुराई से सदा बचाती रही माँ।


सिर पर आँचल, माथे पर बिंदी, ममतामयी माँ का स्वरूप।

छुप छुप के रोती थी वो, पर नही दिखाया अपना ये रूप।

मैं उनकी परछाई हूँ, उनके हृदय का दुःख समझती हूँ।

पिता का भी उसने फर्ज़ निभाया, ये बात नही भूलती हूँ।


माँ का प्यार हर रिश्ते से बढ़कर, हर माँ को हम प्यार दे।

आँसू न आने दे उनकी आँखों में, ख़ुशियों का संसार दे।


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