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Anita Chandrakar

Abstract

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Anita Chandrakar

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होली

होली

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शत्रुता की काई हट जाए, इस बार की होली ऐसी हो।

अपनेपन का अहसास भरा, इस बार की होली ऐसी हो।


कटुता द्वेष दम्भ से कोसों दूर, फाल्गुनी हास परिहास हो।

दहन हो जाये बुराई इस बार, पल्लवित नव आस हो।


अंधी दौड़ से विश्राम दिलाकर, मन को सुक़ून दिलाती हो।

प्रेम रंग में डूब जाएँ सब, इस बार की होली ऐसी हो।


थिरके ख़ुशियाँ दर्द भूलाकर, इस बार की होली ऐसी हो।

मुँह से निकले मीठे बोल, बैर लोभ लिप्सा का नाश हो।


खुशियाँ थिरके आसपास, आज न कोई निराश हो।

मन के सारे मैल धुल जाए, इस बार की होली ऐसी हो।


अपनेपन का अहसास दिलाती, इस बार की होली ऐसी हो।


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