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विधवा जीवन की दुश्वारियाँ

विधवा जीवन की दुश्वारियाँ

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विधवा जीवन

बहुत दुखी थी एक औरत

अपने शराबी पति से

पति निकम्मा और आवारा था

जब भी आता था घर, दुत्कारता था

घर की ज़िम्मेदारी से भागता था

जैसे -तैसे अपना और बच्चों का गुजारा करती थी


फिर भी ना जाने क्यों

करवाचौथ का व्रत वो रखती थी

शायद उसे नयी सुबह आने का इंतज़ार था

या सच कुछ और था

जैसा भी था उसका पति था

उसके सुहागिन होने का प्रमाण था

समाज के भूखे भेड़ियों के विरुद्ध

एक हथियार था


विधवा होने से तो सधवा भली

भले ही उसकी ज़िंदगी नरक हो चली

जानती थी वो

अब ये रिश्ता सिर्फ नाम का था

अकेलापन उसे बहुत ही काटता था

फिर भी ना जाने क्यों

करवाचौथ का व्रत वो रखती थी

पति की लम्बी उम्र की दुआ करती थी

शायद जानती थी

एक विधवा जीवन की दुश्वारियाँ। ..


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