STORYMIRROR

Neerja Sharma

Tragedy

4  

Neerja Sharma

Tragedy

विडम्बना

विडम्बना

1 min
213

एक जमाना था 

जब बटुआ

 पिता के पास ही होता था 

रखा जाता था 

सम्भाल कर तिजोरी में

बिना अनुमति 

कोई छू नहीं सकता था 

सारे जहाँ की दौलत

मानो समाई हो उसमें।


आज

अर्थ बदल गया बटुए का 

दादा से लेकर पोता

बरतता है बटुआ

चाहता है हमेशा रहे भरा

तरीका कोई भी

बस बटुआ फुल।


पहले केवल पति कमाते थे

तो बटुआ पति का 

आज पत्नी भी कमाएँ

सो बटुआ पत्नी का भी 

दोनों कमाते हैं।

 

सो बटुआ बच्चों का भी 

डल जाती पाकैट मनी 

हर महीने के शुरू में।

पति आज भी बचाता है 

पत्नी बच्चे उड़ाते है ।


बटुआ वही

बस परिभाषा बदली 

पति -पत्नी दो पहिए 

जीवन रूपी गाड़ी के

दोनों के बटुए करतें 

हर डिमांड पूरी।


पहले दो हाथ 

एक बटुआ 

आकांक्षाएँ पूर्ण

आज अनेकों हाथ 

अनेकों बटुएँ 

आकाँक्षाएँ


फिर भी अपूर्ण।

है न अजीब 

विडम्बना !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy