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विडम्बना

विडम्बना

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एक जमाना था 

जब बटुआ

 पिता के पास ही होता था 

रखा जाता था 

सम्भाल कर तिजोरी में

बिना अनुमति 

कोई छू नहीं सकता था 

सारे जहाँ की दौलत

मानो समाई हो उसमें।


आज

अर्थ बदल गया बटुए का 

दादा से लेकर पोता

बरतता है बटुआ

चाहता है हमेशा रहे भरा

तरीका कोई भी

बस बटुआ फुल।


पहले केवल पति कमाते थे

तो बटुआ पति का 

आज पत्नी भी कमाएँ

सो बटुआ पत्नी का भी 

दोनों कमाते हैं।

 

सो बटुआ बच्चों का भी 

डल जाती पाकैट मनी 

हर महीने के शुरू में।

पति आज भी बचाता है 

पत्नी बच्चे उड़ाते है ।


बटुआ वही

बस परिभाषा बदली 

पति -पत्नी दो पहिए 

जीवन रूपी गाड़ी के

दोनों के बटुए करतें 

हर डिमांड पूरी।


पहले दो हाथ 

एक बटुआ 

आकांक्षाएँ पूर्ण

आज अनेकों हाथ 

अनेकों बटुएँ 

आकाँक्षाएँ


फिर भी अपूर्ण।

है न अजीब 

विडम्बना !


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