वही वीर कहलायेगा
वही वीर कहलायेगा
शतरंज के रण में राजा खड़ा, खोज रहा है साथ,
घोड़े, हाथी, सैनिक दौड़ो, होगी सह और मात।
आक्रमण की हो रणनीति कि वह निकल न पाए,
दुश्मन पर करो प्रहार कि वो फिर सम्हल न पाए।
चाल उसकी भाँपो और अपनी चल तो ऐसी चाल,
दुश्मन के घोड़े - हाथी मारो, मचा दो रण में बवाल।
बजाओ नगाड़े, घंटों को, गूंजे दिशाएं ललकारों से,
रुंड, मुंड, मेदिनी, अंतड़ियाँ बेधो तीर- तलवारों से।
ऐसा रण हो, ऐसा रण हो, फिर कभी नहीं वैसा रण हो,
गिरती रहे बिजलियाँ, विकट आयुधों का वर्षण हो।
एक युद्ध चल रहा अंतर में, लड़ें उससे ऐसे रथ पर,
सत्य, शील की ध्वजा, बल विवेक के घोड़े हो पथ पर।
क्षमा, कृपा, समता की रस्सी, ईश भजन हो सारथी,
विराग, संतोष का कृपाण हो, युद्ध में बने रहे परमार्थी।
यह संसार है महारिपु, उससे युद्ध जो जीत जाएगा,
जिसका ऐसा दृढ़ संकल्प हो, वही वीर कहलायेगा।
