वह नजर
वह नजर
जिन नजरों से तुम मुझको, कभी देखा करते थे
पता नहीं वह वहम था या, सचमुच तुम कुछ कहा करते थे
तुम कहा कुछ कहते ,पर तुम्हारी आँखें कुछ तो कहती थी
मोहब्बत से छूकर मुझे, मैं खूबसूरत हूँ यह बतलाती थी
कुछ तो जताती थी, मुझे कुछ तो बताती थी
तेरी आँखें तेरे दिल की, दास्ताँ कह जाती थी
जब जब वह नजरे तुम्हारी, मुझ पे रिमझिम कोई बरसाती थी
बन छुई- मुई पलकें मेरी, कभी सहमती तो कभी शरमाती थी
उस नजर में तुम्हारी वजूद मेरा, आज भी बाकी हैं क्या
आँखों-आँखों की वह कहानी, तुम्हारे भी अश्कों की हैं क्या
आज तुम आसपास नहीं, तो रह रह के तुम्हारी निगाहें याद आती हैं
हम मिले और बिछड़े जहाँ, जिंदगी की वह राहे याद आती हैं
अब ख्वाबों की गलियों में, जब जब मुझे दिखते हो
उसी तरह उसी नजर से, तुम दूर से मुझको देखते हो
हम तुम पीछे छूट गए, पर वह नजर पीछा छोड़ती ही नहीं
ख्वाबों में कभी यादों में मिलती, मुझसे नाता देखो तोड़ती ही नहीं
तुम आसपास थे पर मेरे पास तो नहीं, तो अभी तक क्यूं यादों में हो
मेरी हसरत में थे मेरे हक में नहीं, तो क्यूं अभी तक मेरी फरियादों में हो
तुम आँखों से बेशक दूर हो, मगर आँखों में तुम ही बसते हो
अंधेरे में आसमां का, आधा चाँद बन के हँसते हो
यह कैसा तुझसे मोह जुड़ा है, तुझ ही पे आके ठहर जाती हूँ
उस चाँद में देख तुझे, तुझसे सारी बातें कर जाती हूँ
संथ हवा सी छूने तुझे, जमीं से आसमां तक बहती हूँ
और टिमटिमाते तारों में, तेरी 'वह नजर' ढूंढती रहती हूँ।