वह बस्ती
वह बस्ती
वह बस्ती..
वह बस्ती थी कितनी सुन्दर, कितनी थी उस की साख
भरी हुई थी पत्तों से , रंग बिरंगे फूलों से हर शाख-
देखते ही हो जाते सभी हर्ष विभोर
थे उसके चर्चे, उसके गुणगान हर ओर
कल कल करती नदियां, बहता पानी देता ठंडक
साफ़ सुथरी हर पगडंडी, हर रास्ता, हर सड़क
खुला आसमान, चहुं ओर हरियाली
नज़र आती हर ओर खुशहाली
पेड़ पौधे थे खुश - पंछियों के बसेरे थे आबाद
जंगल घने थे, विचरते निडर जीव जन्तु आज़ाद
दायरों का था होता सहज ही आदर सम्मान
सादगी और निष्कपटता का हर ओर पैगाम
नहीं रहते थे उस बस्ती में फरिश्ते या भगवान
मगर बसे हुए थे उसमें अच्छे बुरे सामान्य इन्सान
आई मगर आंधी ऐसी आधुनिकता की
लाई साथ अपने हवा हिंसा की, बर्बरता की
मोह लिया बस्ती वालों को अपनी चमक दमक से
अपने नूर से, खूबसूरती से ,अपने जीने की ललक से
हो गए आंखें होते भी अंधे , नेत्रहीन
विवेक के रहते हो गए विवेकहीन
आ गई उसकी चपेट में अपनी वह प्यारी सी बस्ती
भूल गई, कि थी उसकी भी कभी अनमोल एक हस्ती
आज रहा नहीं कुछ भी यादों के सिवाय
कल कल करती नदियां बहा रही हैं आंसू
पेड़ पौधे सूख कर हो गए हैं जर्जर
हरियाली भूमि बदल गई है ,हो गई है बंजर
खुशहाली बन गई है बस एक सपना
खोजते रह जाते हैं मगर दिखे न कोई अपना
फरिश्ते न सही इनसानों के लिए तरस रही है
बहा रही हैं आंसू
वह छोटी सी बस्ती
