वे लोग
वे लोग
गली, कूंचे और मोहल्ले
की गलियारों में
बतियाते लोग
कुछ कान के पक्के,
थोड़े से कच्चे
तिल से ताड़ बनते लोग
रिश्तों की जंजीरें बंधी
हर घर के बार
समाज की हद खींची
आए मुसीबत या
कोई आफत
मिलजुलकर निपटते लोग
खुशी के मौके
और गम की चादर
या खुशी का कोई त्यौहार
मोहल्ले की छत से
झांकते लोग
कुछ आंगन में
नाचते लोग
हंसी ठहाके,
सर पर मटकी
रास्तों को नापते लोग
कोई शिकायत न
कोई मलाल
अपनी ही धुन में
गाते लोग
थोड़े से ही में
पाकर खुश
हो जाते लोग
तमन्नाएं उनकी
बहूत नहीं
ज़रूरत का सामान
और दो जून की रोटी
साथ साथ मिलकर
खाते लोग।