" वे लगे अपने कहीं "
" वे लगे अपने कहीं "
गीत
पीठ में खंजर चलाएं
वे लगे अपने कहीं !!
बन हितैषी हैं खड़े जो,
बोल मीठे बोलते !
भेद मन का जानने को,
रोज पीछे डोलते !
भाव हम अभिव्यक्त करते,
ले चले छपने कहीं !!
बांध कर रखना वे चाहें,
तोड़ दें सीमा न हम !
तोड़ कर बंधन चले तो,
देखते अपना वे दम !
अस्त्र उनके उठ गए तो,
वे रहे खपने कहीं !!
अन्य का हित जो न चाहे,
देश हित सोचे कहां !
चाह में अपने भले की,
घोंपते खंजर यहां !
दोष जिनकी सोच में हो,
वे रचे सपने यहीं !!