वास्तविकता
वास्तविकता


मतलबी इंसान हैं सारे,
कितना भी कर लो किसी के लिये पूछते तक नहीं,
हर बार दुत्कारते हैं भावना समझते तक नही,
रुलाया जाता है अच्छे और सीधे लोगों को यहां,
प्यार की कीमत नहीं यहां,
आसानी से बिक जाता है इंसान,
खेल बन गया है प्यार,
भावनाओं का लगा दिया है बाजार,
दिल से खेलते हैं फिर हँस के निकल जाते हैं,
सीधे लोग इस खेल में जल्दी फँस जाते हैं,
कभी किसी से बाँटना नहीं अकेलापन अपना,
हर इंसान यहाँ इसलिये ताक लगाए बैठा है,
ताकि भावना से खेल के तोड़ दे वो आपका हर सपना,
यही है आज के जमाने की वास्तविकता,
जहां हर कोई बस मतलब और काम आने पर पूछता।