ऊबा मन
ऊबा मन
तुम्हारे तमाशे अब नहीं लुभाते
तुम्हारे नाटकों से ऊब चुका है मन
पुराने हो चुके हैं तुम्हारे खेल
अदाकारी में भी अब वो बात नहीं रही
मुझसे उम्मीद मत करना आने की
तुम्हारी ढोल फ़ट चुकी है
तुम्हारी पोल पर ताली नहीं बजा सकता हूं मैं
खोल उतारो और हृदय से करो कुछ
ताकि विंधे रोम रोम
न चाहते हुए भी निकल पड़े आंसू
कोरे वादे, आश्वासनों, दिखावटी प्रेम
समझ आ जाता है
देखते देखते हम भी कुशल हो चुके हैं
झट से ताड़ जाते हैं जोकर और बादशाह में फर्क़.