उसका मेरा साथ
उसका मेरा साथ
वह बरगद का पेड़
हरे भरे पत्तों से लदा हुआ
राहगीरों को छांव देता हुआ
न जाने कब से उस नुक्कड़ पर
सड़क के अंतिम छोर पर खड़ा है ;
अक्सर मैं उस रास्ते से गुज़रती रही हूँ,
उससे बिना थके, बिना हारे, अपना कर्म
निभाते हुए देखती आ रही हूं ;
न जाने कितने मौसम , कितने साल
कितनी बरसातें हमने साथ साथ देखी है,
कई बार उसके आँचल से आती हुई
धीमी धीमी हवाओं ने मुझे अपनी
आगोश में लेकर, मेरी थकान मिटा दी है,
और न जाने कितनी बारिश की वह हसीन फुहारें
हरे - हरे पत्तों को छूते हुए
मेरे बदन को सहला गई हैं।
उसका - मेरा साथ बहुत पुराना है
मन के करीब है, गहरा है, दोस्ताना है
कई बार सोंचा कि मैं रुक जाऊं और वह चले ,
आज मैंने उससे पूछ ही लिया कि
चलो दोस्त अपने रास्ते बदलते हैं,
तुम चलो, में रुक जाती हूँ"
वह बोला, " हे प्राणी कर्म क्या कभी बदले जा सकते हैं ?
ए मेरे साथी , मैं यहीं खड़ा हूँ , तुम चलते रहो ,
जब जब तुम्हें धूप सताए या बारिश रास्ता रोके ,
तुम चले आना, मेरे दामन में आकर
थोड़ा सुस्ताना, थोड़ा ठहर जाना
फिर चल पड़ना अपने कर्म निभाने ;
यही सृष्टि हैं , यही इसके नियम हैं
और यही इसकी परिभाषा है!
वह बरगद का पेड़_________