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नमिता गुप्ता 'मनसी'

Abstract Romance Fantasy

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नमिता गुप्ता 'मनसी'

Abstract Romance Fantasy

उस रोज़..

उस रोज़..

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सहेज रही हूं..

एक-एक क्षण.. एक-एक पल

गुल्लक में 

सिक्कों की तरह !!


सुनो न..

अक्सर, सम्मोहित सी करती है

जब भी सुनती हूं

ये खनक !!


तुम..

जब कभी मिलोगे

अंतरालों के बाद,

..हो सकता है

बीत जाएं सदियां भी !!


सुनो..

तुम कर सकते हो इंतजार ,

तय करने दो मुझे भी

इंतज़ार की हदें ,

मैं ऐसे ही मिलूंगी

बिल्कुल, ठीक आज की तरह

और..

फोड़ दूंगी ये गुल्लक

उस रोज !!



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