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सोनी गुप्ता

Classics

4.8  

सोनी गुप्ता

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उर्मिला विरहवास

उर्मिला विरहवास

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345


सब छोड़ चल पड़े

सिया राम संग लक्ष्मण भी वनवास

उर्मिला के लिए कठिन समय था

कैसे कटा उसका विरहवास

लक्ष्मण संग ब्याही

तप त्याग का दूसरा नाम उर्मिला

नववधू बन आई थी

अयोध्या आकर वह हरषाई


पर नियति को कुछ ओर था मंजूर

अब टूट रही थी उसकी आस

इस विकट क्षण में

पति लक्ष्मण ने वचन लिया बांध

बह रही आंखों से अश्रु धारा

उर्मिला का मन हो गया व्याकुल


बोले लक्ष्मण प्राणप्रिये

उर्मिला अश्रु तुम न बहना

रखना ख्याल मात-पिता का

दुख में साथ निभाना

उर्मिला रही वियोग में

लक्ष्मण गए सियाराम संग वनवास


चौदह वर्षों का विरहवास

हृदय भरा विषाद था

आंखों में अश्रु अधरों पर चुप्पी 

मन व्याकुल हो आया था

निंद्रा देवी का आलिंगन कर

चौदह वर्ष का था तप किया

महलों में भी उसने वनवास जिया


जल रही थी विरह अग्नि में

राजसी वैभव सब उसने त्याग दिया

अश्रु जल का अथाह सागर

मन के भीतर समाया था

एक एक पल जोड़कर

उसने लखन वचन निभाया था


बाल्मीकि तुलसी भी

ना कर पाए वर्णन जिसका

यह समर्पण उसका

उर्मिला विरह कहलाया था

उर्मिला विरह कहलाया था।


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