उर्मिला विरहवास
उर्मिला विरहवास
सब छोड़ चल पड़े
सिया राम संग लक्ष्मण भी वनवास
उर्मिला के लिए कठिन समय था
कैसे कटा उसका विरहवास
लक्ष्मण संग ब्याही
तप त्याग का दूसरा नाम उर्मिला
नववधू बन आई थी
अयोध्या आकर वह हरषाई
पर नियति को कुछ ओर था मंजूर
अब टूट रही थी उसकी आस
इस विकट क्षण में
पति लक्ष्मण ने वचन लिया बांध
बह रही आंखों से अश्रु धारा
उर्मिला का मन हो गया व्याकुल
बोले लक्ष्मण प्राणप्रिये
उर्मिला अश्रु तुम न बहना
रखना ख्याल मात-पिता का
दुख में साथ निभाना
उर्मिला रही वियोग में
लक्ष्मण गए सियाराम संग वनवास
चौदह वर्षों का विरहवास
हृदय भरा विषाद था
आंखों में अश्रु अधरों पर चुप्पी
मन व्याकुल हो आया था
निंद्रा देवी का आलिंगन कर
चौदह वर्ष का था तप किया
महलों में भी उसने वनवास जिया
जल रही थी विरह अग्नि में
राजसी वैभव सब उसने त्याग दिया
अश्रु जल का अथाह सागर
मन के भीतर समाया था
एक एक पल जोड़कर
उसने लखन वचन निभाया था
बाल्मीकि तुलसी भी
ना कर पाए वर्णन जिसका
यह समर्पण उसका
उर्मिला विरह कहलाया था
उर्मिला विरह कहलाया था।