Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

3  

Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

????

????

1 min
77


जज़्ब कर ली कमाई पसीने की ,

है लहू की कुछ बूँदे बाक़ी ।

भोला रूप धरे रक्त पिशाच ,

ग़िद दृष्टि जमाये इंतज़ार में 

तेरी थमती साँसो के ।

नारा आज़ादी का ज़ोरों से लगाया था ,

पानी की तरह खून बहाया था ।

सपने संपन्नता के ख़ुशहाली के ,

आँखो में टिमटिमाते थे ,

अंग्रेज सभी शोषक नज़र आते थे ।

अंग्रेज़ी में न जाने क्या क्या बोल जाते थे ।

गाली लगती उनकी हर बोली ,

तान छाती , खाई थी बंदूक़ की गोली ।

कुछ भेष बदल गये , संदेश बदल गये

तू अब भी वहीं खड़ा है ,बलि देने को तैयार ।

अपने ही लूट रहे हैं, रिश्ते पीछे छूट रहें हैं

बहू बेटी की अस्मत लूटते , अपने से लगते लोग ।

बिन ऍफ़ आई आर लिखे थाने से भगाती

पुलिस तुझको ही अपराधी बताती ।

रोटी प्याज़ से खाता तू , ग़ायब हो गयी तरकारी

ग़रीबों का ही होगा कल्याण ,बताती हर योजना सरकारी ।

लाठी बना कमर को तेरी, हँसता बाबू और पटवारी ।

लूटते डॉक्टर / वकील बन कर अपने

नेता /अफ़सर बेचते सुनहरे से रंगीन सपने । 

चूस कर तेरा सारा खून ,हड्डियों से खेलते डांडिया ।

यह कैसा # फ़्री इण्डिया ? यह कैसा फ़्री इण्डिया ?? 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy