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जज़्ब कर ली कमाई पसीने की ,
है लहू की कुछ बूँदे बाक़ी ।
भोला रूप धरे रक्त पिशाच ,
ग़िद दृष्टि जमाये इंतज़ार में
तेरी थमती साँसो के ।
नारा आज़ादी का ज़ोरों से लगाया था ,
पानी की तरह खून बहाया था ।
सपने संपन्नता के ख़ुशहाली के ,
आँखो में टिमटिमाते थे ,
अंग्रेज सभी शोषक नज़र आते थे ।
अंग्रेज़ी में न जाने क्या क्या बोल जाते थे ।
गाली लगती उनकी हर बोली ,
तान छाती , खाई थी बंदूक़ की गोली ।
कुछ भेष बदल गये , संदेश बदल गये
तू अब भी वहीं खड़ा है ,बलि देने को तैयार ।
अपने ही लूट रहे हैं, रिश्ते पीछे छूट रहें हैं
बहू बेटी की अस्मत लूटते , अपने से लगते लोग ।
बिन ऍफ़ आई आर लिखे थाने से भगाती
पुलिस तुझको ही अपराधी बताती ।
रोटी प्याज़ से खाता तू , ग़ायब हो गयी तरकारी
ग़रीबों का ही होगा कल्याण ,बताती हर योजना सरकारी ।
लाठी बना कमर को तेरी, हँसता बाबू और पटवारी ।
लूटते डॉक्टर / वकील बन कर अपने
नेता /अफ़सर बेचते सुनहरे से रंगीन सपने ।
चूस कर तेरा सारा खून ,हड्डियों से खेलते डांडिया ।
यह कैसा # फ़्री इण्डिया ? यह कैसा फ़्री इण्डिया ??