उम्रे ख्वाहिश
उम्रे ख्वाहिश
हर उम्र की अपनी ख्वाहिशें होती हैं
ख्वाहिशों पर कहाँ उम्रे बंदिशें होती है।
बचपन की मनमर्जियाँ प्यारी लगती
पचपन की मनमर्जियाँ बेअदबी लगती।
मचलता था मन दिया को मुठी मेंं समेंटने को
सहमता है मन कली को भर नजर देखने को।
हर उम्र की अपनी ख्वाहिशें होती हैं
ख्वाहिशों पर कहाँ उम्रे बंदिशें होती है।
भरोसे से कागज की नाव डालते थे मझधार में
झिझकते कदम बढ़ने से पड़ने से वैसे इकरार में।
उम्र ने वही बेरुखी दिखाई हर पड़ाव में
पिछले का दुख और आगे के दबाव में।
हर उम्र की अपनी ख्वाहिशें होती हैं
ख्वाहिशों पर कहाँ उम्रे बंदिशें होती है।