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Shravani Balasaheb Sul

Tragedy Others

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Shravani Balasaheb Sul

Tragedy Others

उम्मीदें पंख भी हैं बेड़ियाभी

उम्मीदें पंख भी हैं बेड़ियाभी

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कशमकश में टूटा मांझा, इसे पतंग के पते का पता नहीं 

नए से जगी हार के उम्मीदें, अब हार या जीत पता नहीं

नई सी जिसने उड़ान भरी हैं , वह पंछी देखो डगमगा रहा हैं

आसमां पे मगर नजर रख, वह सितारा देख जगमगा रहा हैं

पर्वत से अपनी पहचान बनाकर, बहती हैं नदी उम्मीद लगाकर

आखिर में खो देती नाम खुद का, वजूद अपना समंदर में मिटाकर

बहती हवा कहती जावा, हर पत्ते के मन का जो गाना हैं

उम्मीद है की जी जाएंगे, मगर खबर है कि झड़ जाना है

ऊँची दीवारों में छोटी सी खिड़की, उम्मीद नहीं बस सपना है

चं

द साँसें उधार लेकर, जीने के लिए तड़पना है

मन का बुद्धि से मेल जिस क्षितिज पे, उम्मीदों के सूरज वहाँ डूब जाते हैं

हर दफा जब उजालों के आघात, आंखों को अक्सर चुभ जाते हैं

जिस पिंजरे में पूरा आसमां कैद हैं, उसे तोड़े या छोड़े क्या सलाह दे

उड़ने की छूट हैं उड़ जाने की नहीं, कैद तो कैद हैं यह कैसे भुला दे

मनमर्झियों के किस्से मन में ही रह गए, कहना था क्या और क्या कह गए

सोचा था कदमों से नाप लेंगे पूरा जहान, ठोकर ऐसी खाई कि बस लड़खड़ाते रह गए



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