Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Vijay Kumar

Abstract

4.5  

Vijay Kumar

Abstract

उम्मीद कम रखता हूँ

उम्मीद कम रखता हूँ

1 min
354


तेरे सवालों का जवाब तो मैं भी रखता हूँ

पर रिश्तों को सुधारने में मैं ज्यादा यकीन करता हूँ

देने वाले को पता है कि मुझे दर्द मिला कितना है

उस दर्द के मरहम के लिए होंठों पे मुस्कान रखता हूँ

                          

  गिले - शिकवे तो दो रूप है रिश्तों का

  इसलिए शिकायतों का पिटारा मैं कम रखता हूँ

  बांटे दर्द का अगर उपहास उड़ाना काम है लोगों का

  तो मैं फिर ग़मों को पीने में ज्यादा यकीन करता हूँ,


जो वादे जो सपने उन्होंने पलकों पे सजाए है

बस उसे पूरा करने का ईमान रखता हूँ

खुशियों और ग़म का मिला रूप है ये जिंदगी

इसलिए कल की बेहतरी के लिए खुश रहता हूँ,

    

 रिश्ते निभाना न निभाना भले है हमारे हाथों में

 पर खोखले रिश्तों को तोड़ना जरूरी समझता हूँ

 तेरे सवालों का जवाब तो मैं भी रखता हूँ

 पर रिश्तों को सुधारने में मैं ज्यादा यकीन करता हूँ,


भावना, ज़ज्बात और विश्वास का जाल है जिंदगी

जिनसे दिल न मिले तो उनसे मैं दूरी रखता हूँ

हमदर्दी के नाम पर तोड़ना और छोड़ना काम है लोगों का

इसलिए लोगों से लगाव और उम्मीद मैं कम रखता हूँ.

 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract