उलझन
उलझन
बढ़ता जाता हर दिन अंतर एक घर में अलग दो जमानों का,
सब वहीं ख़ड़े अपनीही जगह चालू सिलसिला सवालों का!
बस मैं ही गलत हूं समझ रही खुद को जब जब है ये जंग छिड़ी,
दिल जान लगाकर जो है किया क्या गलत हुआ उलझन है बड़ी!
होंगे शायद सब अपनी जगह अपने ही विचारों में ही सही
अब समय बताएं क्या है गलत या फिर है हमारी समझ सही!
