बेबसी
बेबसी
कहीं छूट गया है चैनों-अमन,धुंदलाई हुई आशा मन की
एक नया सवेरा परछाँई सा,मिटती आहट अपनेपन की!
रातों के अंधेरे जगा रहें, फिर दिन के सिवां कई रातों को
हालात न सुलझे कभी अगर,मतलब क्या झूठी बातों को!
झगडालू बड़ा ये दिल है मेरा,कितना भी सुलाओ सोता नही,
उपर की चमकती परतों से मेरे दिल को सुक़ु कभी आता नही!
ना पता ठिकाना राहत का,कब तक बेचैनी सहे ये दिल?
जो हाथ ना हो क़ुछ करने को,क्या ढूंढें जहाँ न हो साहिल!
