उधार की जिंदगी
उधार की जिंदगी
औरतें
उधार की जिंदगी जी रहीं है
भाड़े की देह उन्हें
धारण करनी पड़ रही है
आज़ादी के साथ
नहीं जी पा रही है
जन्म से लेकर मृत्यु तक उनके
तीन मालिक बदलते है
धरती में आने से लेकर
यौवन होने तक
पिता ही उनके मालिक
उसी की खोजी नजर
हर समय रहती है उस पर
युवा होने पर, शादी के बाद
अपने पति ही मालिक होते है
उसका ही शासन चलता है
तब उस पर
हर दिन मंदार पर थाप पड़ती है
नगाड़े पर चोट पड़ता है
उनके फूल जैसे नरम देह पर
इसके अलावा बलात्कार की
असहनीय दर्द तो है ही
घर पर भी और बाहर भी
रहने पड़ते है उन्हें
कृत दासी के रूप में ,
पालतू भालू के जैसा
नाक में रस्सी लेकर ,
तीसरे मालिक होते है
आपने ही देह का अंश ही
जो बड़े होते है और युवा होते है
छाती के दूध से
औरतों की अंतिम जीवन
निर्भर करता है उसकी ही
मर्जी पर
औरतें आज़ादी के साथ
रह नहीं पाती है
जन्म से लेकर मृत्यु तक
उधार का जीवन जीतीं है वह
दूसरों के लिए जीती है
अपनी आशा,आनंद और दर्द को
छाती पर भारी पत्थर से दबाकर
