उड़नतश्तरी
उड़नतश्तरी
एक वाकया बड़ा अजब हुआ
जिसकी मैं हूँ प्रत्यक्षदर्शी
नाम अब तक सुना था कि
होती है भाई उड़न तश्तरी
हुआ यूँ कि मैं घुमड़ते बादलों में थी गुम
ढूंढ़ने टिमटिमाते सितारों का झुंड
टकटकी लगाए आसमां को घूरती अपलक
थी आतुर बहुत तारों की पाने को झलक
अनायास ही एक कम्पन सा हुआ
मुझको ऐसा लगा जैसे बादल फटा
डर के मारे उठी पूरे तन में सुरसुरी
जैसे ही प्रकट हुई वहाँ उड़न तश्तरी
गोल घूमती एक धुरी पर डगमगाने लगी
जो नज़र आ रहा था उसको खाने लगी
मैं सहमी देखती छुपी बरगद की ओट में
कुछ लगती थी कि उसकी नियत खोट में
मैंने आवाज़ माँ को लगायी बहुत तेज़
कि अचानक मुझपर पड़ने लगी कुछ रेज़
मैं पेड़ को पकड़ खुद को बचाने लगी
इतने में आवाज़ माँ की मुझे आने लगी
आज कब तक सोती रहोगी बिटिया
आँख खुलते ही ईश का किया शुक्रिया
हे प्रभु तेरा शुक्र है कि ये बस स्वप्न था
वरना आज बचने का बेकार जतन था
