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उड़ान

उड़ान

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भोर

एक आशा

पा लेने को कुछ दाने

उड़ जाते है नील आकाश में

दिन भर व्याकुल

विचलित

टटोल डालते है

धरती की गोद

पर माँ भी निष्ठुर

मूक बनी

टुकुर टुकुर

ताकती है मुहँ

फिर बढ़ते साँझ का डर

नीड़ में बाट जोहते बच्चे

और दिन भर खाली

हाथ का सच

थके-हारे

लौट आते है फिर

एक तरफ

माँ की कलपती काया

दूसरी तरफ

आज फिर से

व्यर्थ की उड़ान.......


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