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V. Aaradhyaa

Tragedy

4.5  

V. Aaradhyaa

Tragedy

उद्दाम यौवन बीत गया निर्बाध

उद्दाम यौवन बीत गया निर्बाध

1 min
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विकल मन प्रिय से विछोह ना सह पाता अगाध ,

इस मानिनी ने उद्दाम यौवन बिताया है निर्बाध !


प्रिय के बाहुपाश अवगुंठन से रही सदा हीन ,

मिलन की कामना होती हर क्षण विलय में विहीन !


आँखों के कोर पर रुक से गए हैं सूखे हुए अश्रु ,

पीड़ा भरे मन के निलय भाव को देखे कौन चक्षु !


बैठी रहती लिए अपना मन अनुरागी अपने साथ ,

भेद सके ना मेरे हृदय के गुप्त भाव निलय नाथ !


प्रिय संग मन ही मन का ऐसा जो संजोग लगा ,

जैसे तन मन एक होकर ऐसा वक्र व्योम जगा !


निर्बल हुई काया मूक मन हुआ अधीर प्राचीर ,

प्रति पल अश्रुधारा सिक्त तिक्त हिय बहाए नीर !


विच्छिन्न हुए प्राण बाण उन संग प्रीत काहे जोड़ी ,

अब हुई विरिहनी अंतस में उनकी छवि बसी मोरी !



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