तू बैचैन कबीरा रोता क्यों है ?
तू बैचैन कबीरा रोता क्यों है ?
रात अंधेरी तारों वाली
नींद विसारे सोच न्यारी
जब सो जाए ये दुनिया सारी
तू बैचैन कबीरा रोता क्यों है ?
सृष्टि प्यारी क्या खूब रचाई
दे दृष्टि सुन्दर नैनन में
भले बुरे की समझ जगाई
प्रेम परोपकार की सोझी दे कर
ईश मार्ग की राह दिखाई
कहाँ सत्य है कहाँ असत्य
ज्ञान बोध की जोत जलाई
प्रेम नम्रता के बदले जग में
घृणा कांधे पर ढोता क्यों है ?
देख कर जग में द्वेष भाव
तू बैचैन कबीरा रोता क्यों है ?
उसने तो इंसान बनाया
इंनसनियत का सबक पढ़ाया
दे सब को एक रंग लहू का
जाति भेद का फर्क मिटाया
फिर क्यों कोई हिन्दू मुस्लिम
इतना भेद कहाँ से आया ?
प्यारी धरती फूलों जैसी
कांटे नफरत के बोता क्यों है ?
लहू लहू में फर्क देख कर
तू बेचैन कबीरा रोता क्यों है ?
पंचतत्व से बना तन सब का
अंत सभी का एक ठिकाना
माटी से बना ये पुतला
माटी में इसको मिल जाना
एक है ईश सभी का जग में
अल्लाह राम कहाँ से आया ?
बिन वस्त्र के आये इस जग में
फिर ये हरा भगवा कहाँ से आया ?
सुंदर प्यारी धरती सारी
भय के शूल चुभोता क्यों है ?
देख भरे हृदय घृणा से सबके
तू बैचैन कबीरा रोता क्यों है ?
तेरा मेरा ....मेरा तेरा
तब तक जब तक प्राण हैं तन में
ईर्ष्या निंदा लोभ ये लालच
पारस पत्थर इच्छा हर मन में
मिथ्या अहंकार के चलते देखो
लहू टकराये लहू से रण में
हिसाब उसे तुम कैसे दोगे
जो बैठा सृष्टि के हर कण में
जाति मजहब की दीवारें चिन कर
मिथ्या स्वप्न सँजोता क्यों है ?
हम सब हैं उस ईश के बन्दे
फिर ये महाभारत होता क्यों है ?
मानवता पर देख कष्ट क्लेश
अपनी आंख भिगोता क्यों है ?
जब सो जाए ये दुनिया सारी
तू बेचैन कबीरा रोता क्यों है ?
तू बेचैन कबीरा रोता क्यों है ?