तुम्हारी याद
तुम्हारी याद
ये कैसी मजबूरी है मेरी की,तुम्हारी याद भी आती है,और
तुमसे कह भी नहीं सकती,
कहने को तो हम दो एक हमसफ़र है,पर सफ़र में हम साथ नहीं
देखों न राहें तो आज भी मेरी तुम्हारी गलियों से ही होकर गुजरती है ,
पर मैं-तुम हमराही नहीं रहे,ये कैसी मजबूरी है मेरी की,
तुम्हारी याद भी आती है,और तुमसे कह भी नहीं सकती ,
मैं तो आज भी रात भर जगी हूँ,तुमसे बात करने को
पर भूल गयी,कि अब तो वो रात हीं नहीं,जब
तुम मुझसे बातें करने को रातों जागे रहते थे ,
किस से कहुँ इस दिल की गुफ्तगू, की नींद नहीं आती तुम- बिन
देखो चाँद आज भी वैसे हीं चमक रहा,जी चाहता है उस चाँद से तुम्हारी शिकायत करूँ,
पर कमबख्त दिल मे कोई बात नहीं,
की कैसे कहूं उस चाँद से मैं अपने हीं चाँद की शिकायत,
वो भी हँस रहा मुझ पर,की देखो उसकी चाँदनी उसके पास वहीं,
आज एक तमन्ना लिए फिर सो जााती हूँ,की कल मैं तुम साथ सही,
कसम तुम्हे मेरे इश्क़ की,नहीं तो मैं रो परूँगी,मोहब्बत है मेरी किसी आशियाँ का किरदार नहीं
कल मेरा भी महबूब भी साथ होगा,अपने हाथों से मेरे बालों को सवाँर रहा होगा,
ए-चाँद तेरी चाँदनी के जगमगाती रौशनी में,
आज हँस लिए हो,पर मेरी मोहब्बत पर कोई हँसे ये मुझे गवारा नही,
चाहें जो शितम करनी है करलो ए हवायें आज ही,मुझे कोई ऐतराज नहीं
क्योंकि यकीन है मुझे मेरे महबूब पर, वो मुझसे कल जरूर रूबरू होंगे ,
उनके बाहों में ही सोई रहूंगी,और फिर मैं कभी भी ये न कहूँगी की,
ये कैसी मजबूरी है मेरी की,तुम्हारी याद भी आती है,और तुमसे कह भी नहीं सकती ।