इशारों -इशारों में
इशारों -इशारों में
पर्दे के पीछे से जब वो मुझे देखा करती थी
मुझसे नज़रे मिलते हीं, शर्मा सी जाती थी
दिलकश मुस्कान से अपनी, वो मुझ पर
बिजलियाँ गिराया करती थी ।
लफ्ज़ खामोश होते थे उसके,पर वो
आँखों से गुफ्तगू किया करती थी
इशारों-इशारों में ही वो मुझ पर
अपना हक जताया करती थी ।
दूर से हीं वो निगाहों से मुझे
औरो से जुदा करती थी, बेहद
मोहब्बत करती थी मुझसे वो पगली
पर कभी जुबान से न कहा करती थी ।
गीले ज़ुल्फ़ों की ठंडी सी छींटे जब
ऊपर से वो मुझ पर बरसाया करती थी,
उफ्फ,दिल भींग सा जाता था मेरा
हर सुबह जब खिड़कियों पर मैं
चाय की चुस्कियाँ लिया करता था
और वो सामने वाली बालकनी पर,
कपड़े सुखाने के बहाने आती थी
उसकी उस अदा से मन मचल जाया करता था।
हाय ! शीत की फुहारों में भी वो मेरे लिए
रातों को सबसे छुप छत पर आया करती थी
एक रोज़ इस दिल ने कहा अब सब्र नहीं
इश्क़ के इज़हार में,
फिर कह डाला दीवाने ने उसके दीदार में
हीरिये मैं दिल हार गया तेरे इश्क़ के कारोबार में
तो कह गयी शर्मा कर वो पगली मेरी
राँझे वारी-वारी जावा मैं तेरे प्यार में ।