ए-नाज़नीन
ए-नाज़नीन
ए-नाज़नीन अपने रूख के जादू को हम पर ना आजमाया कर,
मेरे दिलों पर अपनी तीखी नज़रों से यूँ धार ना चलाया कर,
तेरे खूबसूरती के कायल से हो गये हैं हम अब हर पहर,
तन्हा हवेली में पाजेब पहन कर यूँ ना जाया कर,
तेरी पाज़ेब की झनकार से मुझे अपने करीब ना बुलाया कर,
तेरे माथे की बिंदिया, तेरे गुलाब सी पँखुरी जैसे होठों से
ये बेहतरीन नग्मों का राग यूूँ ना गुनगुनाया कर,
ए नाज़नीन अपने रूख के जादू को हम पर ना आजमाया कर,
तेरे घुंगराले से ये काले बाल, तौबा तेरी ठुमकती मतबाली चाल,
तेरी ये आदये कातिल बना जाती है मुझे , मुझसे यूँ ना शरमाया कर,
अपने गहनों के इस चमक को ए-नाज़नीन खुलेआम ना बिखराया कर,
सैर करती है जब तू हवेली में, तो चाँद भी खिड़कियाँ बदलते हैं,
उस आफताब की रौशनी को देख यूँ न मुस्कुराया कर, अपनी
मुस्कुराहटों से मेरे दिल को ना धड़काया कर,
पल भर ठहर तो जा तुझे पूरा देख तो लूं , एक झलक दिखा कर ,
ए -हमनशीं यूूँ, मुझसे दूर जाकर तू मेरे इश्क़ को ना सताया कर,
ए नाज़नीन अपने रूख के जादू को हम पर ना आजमाया कर,
मेरे दिलों पर अपनी तीखी नज़रों से यूँँ धार ना चलाया कर।