STORYMIRROR

Meenakshi Gandhi

Romance

4  

Meenakshi Gandhi

Romance

तुम्हारी कमी..

तुम्हारी कमी..

1 min
220


जब कभी भी अकेली हो जाती हूं ,

तो याद आती हो तुम..

कि कैसे हम दोनो को एक दूजे का साथ दिया करते थे ।।


जब कभी भी हिम्मत हार रही होती हूं ,

तो याद आती हो तुम ..

कि कैसे हम एक दूजे को उत्साहित किया करते थे ।।


कभी भी कुछ अलग करने का सोचूँ ,

तो याद आती हो तुम ..

कि कैसे हम लीक से हटकर सोचा करते थे ।।


कभी कुछ अपने में बदलाव करने का सोचूं ,

तो याद आती हो तुम..

कि कैसे तुम मुझे बदलाव को अपनाने के लिए प्रेरित करती थी ।।


कभी कोई किताब उठाती हूं ,

तो याद आती हो तुम..

कि कैसे हम एक दूजे के लिए किताबें खरीदा करते थे ।।


कभी खुद से शिकायत होती है ,

तो याद आती हो तुम ..

कि कैसे तुम मुझे खुद को अपनाना सिखाती थी ।।


जब कभी जन्मदिन पर उदास हो जाऊं,

तो याद आती हो तुम ..

कि कैसे तुम इस दिन को उत्सव बनाती थी ।।


कभी भी जीवन में कोई मुश्किल आती है ,

तो याद आती हो तुम...

की कैसे तुम हंसते हंसते जीवन में संघर्ष कर रही हो ।।


बहुत याद आती हो तुम...

बहुत समय हुआ एक दूजे को देखे हुए..

मगर दिल के बहुत करीब हो तुम...

बहुत याद आती हो तुम ...


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance